नवरात्रि का चौथा दिन (Navaratri 4th Day): माँ कुष्मांडा की कथा, मंत्र, आरती और क्षमा याचना! नवरात्रि का चौथा दिन मां कुष्मांडा को समर्पित होता है। कुष्मांड का मतलब होता है कुम्हड़ा (कद्दू या पेठा)। यह फल माता कुष्मांडा का प्रिय भोग है, जिसकी माता को बलि चढ़ाई जाती है। यदि आप कद्दू की बलि न चढ़ा सके तो मां को इसकी मिठाई का भोग भी चढ़ा सकते है। माता का प्रिय रंग हरा है, माई भक्तो को इस दिन हरे रंग के वस्त्र पहनकर मां की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि के उद्भव से पहले जहा चारो ओर सिर्फ अंधकार ही था, तब माँ कुष्मांडा ने हमारे ब्रम्हांड की रचना की थी। इसीलिए मां को सृष्टि की आदि स्वरूपा और सृष्टि की आदि शक्ति भी कहा जाता है। कहा जाता है की माता का वास सूर्यमंडल के भीतर है। सभी हिंदू देवी- देवता में से माँ कुष्मांडा के पास ही ऐसी शक्ति और क्षमता है। इसीलिए मां के शरीर की कांति और प्रभा सूर्य के भाती ही वैदित्यमान है, इनके तेज के कारण ही दसों दिशाएं आलोकित है। ब्रम्हांड की सभी वस्तुएं और प्राणियों में मां का तेज ही व्यापत है।
नवरात्री के चौथे दिन की पूजा विधि
पवित्र और स्थिर मन से नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा आराधना करनी चाहिए। ऐसा करने से भक्तो के सारे रोग और शोको का अंत होता है, साथ ही साथ भक्तो को धन, यश, बल और अच्छे आरोग्य की प्राप्ति होती है। माँ अपने भक्तो से जल्द ही प्रसन्न होकर अपने भक्तो को आशीर्वाद देती है। सच्चे मन से माँ की भक्ति करनेवालों को इस भवसागर से मुक्ति और मोक्ष मिल जाता है।
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माँ कुष्मांडा अपने भक्तो की आधी व्याधि से रक्षा करती है और अपने भक्तो को हमेशा सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं। इसीलिए नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा अर्चना सच्चे मन से करनी चाहिए। मां सूर्य से सबंधित दोषों को भी दूर करती है, जिस भी भक्त के कुंडली में सूर्य के संबंधित समस्याएं है तो माता की पूजा करने से इसका निवारण जल्द ही मिल जाता है।
नवरात्री के चौथे दिन की कथा
माँ कुष्मांडा की कथा को विस्तार से समझने के लिए आपको आज के दिन श्री दुर्गा सप्तशती का पांचवा, छठा, सातवा और आठवां अध्याय पढ़ना या सुनना चाहिए। नवरात्रि के चौथे दिन सुबह को स्नान करने बाद साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। यदि ही सके तो हरे रंग के वस्त्रों को उपयोग में ले। इसके बाद आपको हाथ में स्वच्छ जल और ताजा फूलो को रखकर माँ कुष्मांडा की पूजा अर्चना करने का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प लेने बाद जल और फूलो को माता के चरणों में समर्पित करे।
गंगाजल छिड़क कर मंदिर को पवित्र करे, धूप और दीपक जलाए, माँ को हरे रंग की चूड़ियां और मेहंदी अर्पित करे। दीपक के साथ मंत्रो का उच्चार करते हुवे आपको माँ की पूजा आरती करनी होगी।
नवरात्रि का चौथा दिन: पूजन मंत्र, प्रार्थना और स्तुति मंत्र
देवी कुष्मांडा का पूजन मंत्र
- “ॐ देवी कुष्मांडायै नमः।”
माँ कुष्मांडा की प्रार्थना
- “सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु में।।”
माँ कुष्मांडा का स्तुति मंत्र
- “या देवी सर्वभूतेषु माँ कुष्मांडा रूपेण संस्थिता।
- नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।”
माँ कुष्मांडा की आरती
ॐ जय कुष्मांडा मां, मैया जय कुष्मांडा मां। शरण तिहारी आई, कर दो माता दया। ॐ जय कुष्मांडा मां। |
अष्टभुजा देवी, आदिशक्ति तुम मां। आदि स्वरूपा मैया, जग तुमसे चलाता। ॐ जय कुष्मांडा मां। |
चतुर्थ नवरात्रों में, भक्त करे गुणगान। स्थिर मन से मां की, करो पूजा और ध्यान। ॐ जय कुष्मांडा मां। |
सच्चे मन से जो भी, करें स्तुति गुणगान। सुख समृद्धि पावे, मां करें भक्ति दान। ॐ जय कुष्मांडा मां। |
शेर है मां की सवारी, कमंडल अति न्यारा। चकरी पुष्प गले माला, मां से उजियारा। ॐ जय कुष्मांडा मां। |
ब्रह्मांड निवासी मैया, महिमा वेद कहे। दास बनी है दुनिया, मां की करुणा बहे। ॐ जय कुष्मांडा मां। |
पाप ताप मिटता है, दोष ना रह जाता। जो माता में रमता, निश्चित फल पता। ॐ जय कुष्मांडा मां। |
अष्टसिद्धियां माता, भक्तो को दान करे। व्याधि मैया हरती, सुखों से पूर्ण करें। ॐ जय कुष्मांडा मां। |
कुष्मांडा मैया की, आरती नित्य गाओ। मां करेगी सब संभव, मां की शरण में आओ। |
ॐ जय कुष्मांडा मां, मैया जय कुष्मांडा मां। शरण तिहारी आई, कर दो माता दया। ॐ जय कुष्मांडा मां। |
कुष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी।
पिंगला ज्वालामुखी निराली। शंकबदी माँ भोली भाली।
लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कै मतवाले तेरे।
भीम पर्वत पर हैं डेरा। स्विकारो प्रणाम ये मेरा।
सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुचति हो माँ अम्बे।
तेरे दर्शन का ये पैसा। पूर्ण कर दे मेरी आशा।
माँ के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी।
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो माँ संकट मेरा।
मेरे करज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो।
तेरा दास तुझे ही ध्याये। भक्त तेरे दर शीश झुकाये।
क्षमा याचना
पूजा अर्चना के बाद अंत में क्षमा याचना जरुर करनी चाहिए, यदि हमसे इस विधि, पूजा अर्चना में को भूल हो गई हो तो माँ हमें माफ़ कर दे और हमें किसी भी प्रकार का दोष न लगे। क्षमा याचना आपको दिन में दो बार सुबह और शाम को करनी चाहिए। क्षमा याचना…
हे परमेश्वरी मेरे द्वारा रत – दिन सहस्त्रों अपराध होते रहते है। |
अपने भक्त समजकर मेरे उन अपराधों को आप कृपा पूर्वक क्षमा करो। |
हे परमेश्वरी मै आह्वान करना नहीं जानता/जानती, विसर्जन करना नहीं जानता/जानती, तथा पूजा करने का ढंग भी नहीं जानता/जानती, क्षमा करो। |
हे देवी हे सुरेश्वरी मैंने जो मंत्रहीन, क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है वह सब आपकी कृपा से पूर्ण हो। |
सैकड़ो अपराध करके भी जो आपकी शरण में ‘जय जगदंबे’ कहकर पुकारता है उसे वह गति प्राप्त होटी है जो ब्रह्मादी देवताओ के लिए सुलभ नहीं है। |
हे जगदंबिके में अपराधी हु, किंतु आपकी शरण में आया हूँ इस समय दया के पात्र हूँ, आप जैसा चाहो करो। |
देवी परमेश्वरी आज्ञान से, भूल से, अथवा बुध्धि भ्रम होने के कारन मैंने जो कुछ भी कम या अधिक कर हो वह सब क्षमा करो, प्रसन्न हो। |
हे सच्चिदानंद स्वरुपा परमेश्वरी! हे जगन्नमाता, कामेश्वरी आप प्रेम पूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार करो, और मुझ पर प्रसन्न रहो। |
देवी सुरेश्वरी! आप गोपनीय से भी गोपनीय वस्तुओ की रक्षा करने वाली हो, मेरी पूजा को ग्रहण करो और आपकी कृपा से मुझे सिध्धि की प्राप्ति हो। |
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